Bangladesh Election 2026 April Yunus Announces Poll Amidst Protests Pressur

बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है. लगातार अंतरिम सरकार पर दबाव बन रहा था कि वो जल्द से जल्द चुनाव कराए. इसी दबाव को देखते हुए शुक्रवार को यूनुस ने ऐलान किया कि साल 2026 के अप्रैल महीने में किसी भी दिन चुनाव कराए जा सकते हैं. हालांकि वोटिंग की सटीक तारीख अभी तय नहीं की गई है.

ऐसे में इस स्पेशल खबर में जानेंगे कि लगातार चुनाव टालने वाले यूनुस क्यों घुटनों पर आ गए. और चुनाव कराने के लिए इतनी जल्दी मान गए. दरअसल, इसके तीन कारण हैं. विपक्षी दलों का आंदोलन, भारत का कड़ा रुख और सेना प्रमुख की बगावत जैसी स्थिति. इन्हीं तीन कारणों को इस खबर में आसानी से समझेंगे.

विपक्षी दलों का सड़कों पर आंदोलन

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 28 मई को BNP के कार्यकर्ता और हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और दिसंबर तक चुनाव कराने की मांग की. पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान ने लंदन से वर्चुअल तरीके से रैली को संबोधित करते हुए यूनुस सरकार पर चुनाव में देरी करने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि हर बार की तरह इस बार भी तीन महीने में चुनाव हो जाना चाहिए था, लेकिन 10 महीने बीतने के बाद भी कोई तारीख तय नहीं की गई. ऐसे में माना जा रहा है कि लगातार इन दबाव के कारण यूनुस को ये फैसला लेना पड़ा है.

भारत का कड़ा प्रेशर

भारत शुरू से ही यूनुस सरकार के रुख से नाखुश नजर आ रहा है. माना जा रहा है कहीं न कहीं नई दिल्ली को डर है कि अगर चुनाव में देर हुई तो बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों को हवा मिल सकती है. भारत की खुफिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अगर सत्ता परिवर्तन में देरी हुई तो ISI और जमात-ए-इस्लामी जैसे गुट हालात को भुना सकते हैं. भारत ने हाल ही में बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बातचीत में साफ कर दिया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया जल्द बहाल होनी चाहिए. भारत की नजर बांग्लादेश में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भी है, जिसे वह सीमित करना चाहता है.

आर्मी चीफ की बगावत

बांग्लादेश के मौजूदा सेना प्रमुख जनरल वकर-उज़-ज़मान और यूनुस में कई बार अनबन हुई है. सेना प्रमुख ने एक नहीं बल्कि काफी बार इलेक्शन में देरी के कारण यूनुस सरकार के खिलाफ नाराजगी जताई है. सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने कहा है कि सेना लोकतंत्र को कमजोर होते हुए नहीं देख सकती. ऐसे में माना जा रहा कि यूनुस के लिए सत्ता में बने रहना मुश्किल हो रहा था. उनको ये डर सता रहा था कि कहीं उनके साथ वैसा ही न हो, जैसे शेख हसीना के साथ हुआ था.

यूनुस की छवि पर संकट

मुहम्मद यूनुस का नोबेल विजेता होना और उनकी वैश्विक पहचान अब विपक्ष के निशाने पर है. BNP और अन्य दलों ने आरोप लगाया है कि यूनुस लोकतांत्रिक मूल्यों की आड़ में सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं. छात्र संगठनों ने भी यूनुस समर्थित नेशनल सिटिजन पार्टी के खिलाफ नारेबाजी की. उनकी छवि अब ‘संविधान रक्षक’ से बदलकर ‘टालमटोल करने वाले प्रशासक’ जैसी हो गई है.

यूनुस सरकार के खिलाफ खासतौर पर युवाओं में गुस्सा है. बेरोजगारी, शिक्षा व्यवस्था की अनदेखी और राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से युवा सड़कों पर हैं. इन्हीं युवाओं ने 28 मई को ढाका में ऐतिहासिक रैली निकालकर यह बता दिया कि अब और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

विपक्ष की एकजुटता भी एक कारण

BNP के साथ 27 अन्य विपक्षी दल भी मैदान में उतर आए हैं. यह पहला मौका है जब बांग्लादेश की विपक्षी ताकतें एक मंच पर दिख रही हैं. ऐसे में यूनुस सरकार पर चारों ओर से दबाव बनता जा रहा है. अगर सरकार और टालमटोल करती रही, तो विपक्ष सिविल नाफरमानी जैसे कदम उठा सकता है. ऐसे में इसीलिए यूनुस सरकार ने अब साफ कर दिया है कि आने वाले साल 2026 के अप्रैल में चुनाव कराए जाएंगे.

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